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28-03-2019 By Admin

प्रियंका

इत्तिफाक है कि प्रियंका चोपड़ा की शादी है और हमारी प्रियंका की भी। प्रियंका उस लड़की का नाम है जो हमारे घर में साफ-सफाई चौका बर्तन करती है। प्रियंका की उम्र करीब 18-19 साल है। प्रियंका सीतापुर के किसी गॉव की रहने वाली है। उसकी माँ भी चौका-बर्तन करती है। हमारी प्रियंका जब किसी महाकाव्य की नायिका बनेगी वह रामराज्य होगा।


इत्तिफाक है कि प्रियंका चोपड़ा की शादी है और हमारी प्रियंका की भी। प्रियंका उस लड़की का नाम है जो हमारे घर में साफ-सफाई चौका बर्तन करती है। प्रियंका की उम्र करीब 18-19 साल है, हमारी बेटियों गौरी, वृंदा के बराबर। एकदम दुबली-पतली छरेहरी सी बच्ची। पक्का साँवला रंग। किसी भी वैश्विक सौन्दर्य प्रतिस्पर्धा में शायद प्रियंका को अपने शरीर-सौष्ठव के लिए सर्वश्रेष्ठ होने का सम्मान मिले। कुल जमा 40-42 किलो उसका वजन एकदम दुबली-पतली। प्रियंका चोपड़ा के बारे में सबलोग जानते हैं उनकी शादी तय हुई  है। कब मार्केटिंग कर रहीं है। कहां विवाह का आयोजन होगा? शादी का जोड़ा कहां से खरीदेगी और कितने का होगा। सबकी नोटिस मे हैं, इसलिए बचे हुए समय में हम प्रियंका के बारे में बात करेगें जो हमारे घर में काम करती है। प्रियंका सीतापुर के किसी गॉव की रहने वाली है। उसकी माँ भी चौका-बर्तन करती है। जब उसकी शादी तय हुई थी तो ससुराल वालों ने उससे कोई मांग नहीं की थी। मुझे मालूम भी ऐसे चला कि घर में मैने एकदिन देखा किं सिलाई मशीन रखी हुई है। ऑनलाइन ‘परचेज‘ की गई। मैने पूछा तो पता चला कि प्रियंका ने मेरी पत्नी सुनीता  से कहा कि आप हमें जो महीने मे पैसे देती है वो न दे, उसके बदले में उन पैसों से हमारे लिए मशीन मगां दे, सिलाई मशीन सिंगर की। प्रियंका  को चिंता है घर गृहस्ती बसाने की विवाह के बाद। जब ये शादी तय हो रही थी तो घर वालों से ससुराल वालों ने केई मांग नहीं की थी। लेकिन अभी पिछले, महीने उसकी सगाई हो गयी। मालूम चला कि लड़के या उसके पिता ने मोटरसाइकिल मांगी है।

 

हम पत्नी बच्चों के साथ बैठे थे, प्रियंका काम कर रही थी तो मैने पूछा कैसी है तुम्हारी तैयारी? क्या हो रहा है? पहले बहुत संकोच करती थी मुझसे बात करने में, लेकिन अब बात करती है। बहुत निर्दोष सी बच्ची है। पिक्चरो, सीरियलों, अडवर्टाइजमेंट में काम करने वाली महिलाओं का जो ऐटिट्यूड दिखाया जाता है वह नहीं है। तो मै बता रहा था कि प्रियंका एक 18-19 साल की छोटी सी लड़की है, विवाह तय हो गया है, सगाई हो गई है। मन से काम करती है। सुबह उठने पर जो जगह बहुत गंदी होती है, और किचन भी खड़े होने लायक नहीं होता है, उसके जाने के बाद एकदम जन्नत हो जाता है। एकदम चमक जाता है, साफ-सुथरा हो जाता है।  खुश है, हंसती है। वो बात अलग है कि विवाह तय हो जाने के बाद उसके चेहरे में एक खास तरीके का स्वाभिमान दिखता है, चमक दिखती है। प्रियंका को जब मै देखता हूँ तो ऐसा लगता है कि मेरा सूक्ष्म अस्तित्व प्रियंका के शरीर में, उसके मन में, उसकी चेतना में, उसके प्राण में, उसकी आत्मा में समा गया है। फिर मै सपने देखता हूं यानी कि प्रियंका सपने देखती है। वह यह सपना देखती है कि उसका पति मोटरसाइकिल चला रहा है। वह उसके कंधे पर कमर में हाथ डालकर बैठी है। विवाह हो रहा है। प्रियंका का पति उसके साथ फेरे लेगा। प्रियंका के दिल में भी गीत है। उसके मन में भी पंख हैं। उसकी भी चेतना पूरी ऊर्जावान, पूरी प्राणवान है।

 

वाल्मीकि के समय की, तुलसी के समय की, कालिदास के समय की, भवभूति के समय की, शेक्शपियर के समय की, कीट्स और बॉयरन, सुमित्रानंदन पंत और निराला के समय की, अनेक समयों की प्रियंकाएं विवाह करती हैं। और अमूमन जिससे विवाह करती है उससे प्रेम करती हैं। और उनके प्रेम में भी वे सारे डायमेंसन्स है, उनके विवाह में सारे उमंगें है जो राजकुमारियों में होते हैं। किन्तु इनपर कोई गीत नहीं हैं। हमारी प्रियंका क्या खरीदेगी, किससे मेंहदी लगवाएगी कौन-कौन आकर उसके विवाह में गीत गायेगें। वो गीत कौन से होंगे। कौन उसका खाना बनायेगा। कैसे ससुराल जाएगी। लोटे में भरा हुआ अनाज जब देहरी पर रखा होगा तो उसमें पैर मारकर घर में प्रवेश करेगी। इसके सारे जो क्रियाकलाप होगें उनके साथ जो प्रियंका का गीत होगा, जो प्रियंका के मन में उल्लास होगा न ही सोशल मीडिया पर वायरल होगा, न किसी न्यूज चैनल के कैमरे का फ्लैस होगा, और न ही ये न्यूज ही होगी। क्या इसकी तीव्रता, इसका घनत्व किसी ऐसी स्त्री से कम है, जिस स्त्री के विवाह में जो जोड़ा खरीदती है, विवाह के समय पहनने के लिए, उसकी कीमत इतनी ज्यादा है कि ऐसी सैकड़ों प्रियंकाओं के विवाह का कुल खर्चा, उतना नहीं है। शायद, दो-तीन प्लेट खाने की वो कीमत होगी, बड़ें प्रियंकाओं के विवाह की, जितने में इस प्रियंका के विवाह का सारा भोजन बनेगा। लेकिन इससे प्रियंका के गीतों की कीमत कम नहीं हो जाती। प्रियंका के सपनों की उडा़न कम नहीं हो जाती। प्रियंका के दिल में उठते हुए बुलबुले उतने ही गगनचुम्बी है। प्रियंका के प्रेम के संगीत में वही देवताओं को रुझाने की सामर्थ्य है जो किसी प्रियंका के गीत में हो सकती है। यह हमारी प्रियंका के नसीब में होगा कि जब वे अपने पति को छुएगी, तो शायद पहली बार किसी पुरुष को पुरुष के रुप में स्पर्श करेगी। सैकड़ों अप्सराओं के अपने देवताओं के स्पर्श का वह घनत्व नहीं हो सकता जो प्रियंका के अपने पति के पहले छुवन में होगा। सैकड़ों अप्सराएं अभिसार के लिए अपने प्रेमियों की तरफ दौड़ती हैं। तो उनकी पायल की रुनझुन में वह संगीत और लय नहीं होगा। जो हमारी प्रियंका के पाजेब में जब वो रोते हुए अपने पिता के गले से विलखकर अलग हो रही होगी, और अपने पति की तरफ बढ़रही हेगी, तो उसकी पाजेब की रुनझुन में होगा। प्रियंका के नसीब में यह है कि एक अल्लढ़ सी बच्ची अपने पती के संग पहली बार पूर्ण स्त्री होने का बोध पाएगी। उसके प्रेम के कौंवार्य अभिव्यक्ति की कीमत चांद सितारे भी नहीं चुका सकते। मनुष्य जाति की बात ही क्या है। हम इस लेख में किसी का तुलनात्मक कम ज्यादा या किसी को श्रेष्ठ, कनिष्ठ बताने का प्रयास नहीं कर रहे है।

 

विवाह के क्षड़ों में ही जो प्रियंका को प्राप्ति होगी उसकी कीमत पैसे से नहीं की जा सकती, अमूल्य है। प्रियंका ने इस संसार में अमूूमन लोगों  को अपरिचय के साथ देखा है। मुझे नहीं लगता कि प्रियंका की चाल-ढाल में किसी के प्रति भी कोई परिचय का बोध है। सबको अपरिचय से देखती है। मेरे परिवार के सभी सदस्यों को अपरिचय से देखती है। अमूमन बाते नहीं करती है उसको काम से मतलब है वो काम करती है, चली जाती है। उसके अपने परिवार के लोगों के अतिरिक्त पहली बार उसके परिचय का संसार बढ़ेगा। अपने  सारे रिश्तों को तोड़कर या  जोडे़ हुए भी वह नए संसार में प्रवेश करेगी।  उसकी वो नए संसार में प्रवेश करने की गुदगुदी और एकदम नए संसार में प्रवेश करने के कारण गुदगुदी के साथ जो भय है, वो उसके मन में ऐसे भाव पैदा करता है जिसके लिए शायद काव्य संसार में कोई शब्द नहीं बना है। लेकिन इससे उसके भाव की कीमत कम नही हो जाती है। और बाजार में उसकी शायद कोई कीमत भी नहीं है इसलिए वह निर्मूल्य भी नहीं हो जाती है। इस प्रियंका को कभी किसी अपरिचित ने कहीं काम करती हो या कहीं और नाते-रिश्तोदारों में से या किसी और शहर में रहने वाले लोगों ने इसे छेड़ा हो तो इसकी शिकायत पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा हो जाएगा- मी टू टाइप का कोई इसको बड़ा सहयोग मिल जाएगा इसकी भी संभावना नहीं है। लेकिन इससे प्रियंका का अस्तित्व बौना नहीं हो जाता।

 

प्रियंका ने जो आकार और शरीर सौष्ठव पाया है वो संसार के अनेक अभिनेत्रियां के कल्पना का चरम है। प्रियंका कक्षा 8 तक पढ़ी है हिंदी लिख-पढ़ लेती है। और रोमन स्क्रिप्ट में लिख लेती है, अंग्रेजी पढ़ नहीं पाती है। लेकिन इसको ले करके उसके मन में कोई मलाल नही है। हमें बताती है हिंदी पढ़-लिख लेते है। अंग्रेजी लिख लेते है। मुझे न जाने क्यों लगता है  कि जब वो बर्तन धोती है, जब पोछा लगाती है तो अपने भावी पति के साथ सपनों में झूलती है। एक पींग भरती है। और बहुत दूर यात्रा पर निकल जाती है। शरीर से काम करती है, मन से कल्पना से बहुत दूर रहती है। वो जो गीत गाती है उसको पढ़ने की मैं कोशिश करता हूं। कल्पना से मैं भी उसके गीतो को पकड़ने की कोशिश करता हूं। उसके गीतो में सारे सुर है। सारे अर्थ हैं। शकुन्तला से लेकर के मृगनयनी तक, सीता से लेकर के रानी लक्ष्मीबाई तक जो गीत स्त्रियों ने गाये है, जो स्वर उनके कण्ठ में फूटे हैं, वो प्रियंका के भी स्वर और गीत हैं। काम के बोझ में उसके गीतों के स्वर दबते नहीं है। उसके मन के पंख कुम्हलाए भी नहीं है। उसकी हिरणी सी आखें वो सारे सपने देखती हैं, जो राज घराने की अभिनेत्रियों ने देखे हैं। उसके सपनों में भी नीला आसमान उतरता है एक खिले हुए चांद के साथ। सुबह के सूरज की लालिमा उसके भी सपनों को सिंदूरी रंग से भर देती है। जो पवित्र राग सीता ने जनक वाटिका में राम को देखकरके गाया था, वो प्रियंका के भी फूटता है। जिस प्रेम से आकर्षित होकर पार्वती ने शंकर की सैकड़ों-हजरों वर्षों तक तपस्या की थी, वह प्रेम प्रियंका के दिल में भी है। प्रियंका विवाह और प्रेम देनों की सच्ची किरदार है। लेकिन इस चकाचौंध दुनिया में न उसके चितेरे लेखक हैं और न ही इस सूचना तंत्र की आंधी में उसके प्रेम की टिमटिमाती लौ को जीने देने की सहज उदारता। उसके गीतों के लिए सबके कान बहरे हैं। उसके पायल की रुनझुन, उसकी चूड़ियों की खनक, हमारे लिए बासी और झूठी है।

 

हम हज़ारों वर्षों से ऐसे ही हैं। हम प्राकृतिक उदात्त संवेदनाओं का भी साधनों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं। प्रेम कितना विराट है इसका मूल्यांकन इस आधार पर करते हैं कि प्रेम की अभिव्यक्ति का साधन क्या है। हमारे पास तो सामान्य समझ का भी अभाव है। हमारे घर में जिनके आने से घर उठने बैठने लायक बनता है। गंधाता हुआ बाथरूम एकदम से सुगंधित हो जाता है। एकदम लिजलिजाया सा फर्श और भभकता हुआ किचन महकने लगते हैं। बेतरतीब चीजें तरतीब में हो जाती हैं। उनके आने और जाने पर हम अमूमन उदासीन रहते हैं। और बचके निकलते है उनसे। हम जबतक यह नहीं करेगें कि बाथरूम को साफकर निकलने वाले व्यक्ति के पैर छुएँ। नालियों, सीवर लाइनों को साफ करने वाले लोगों को हाथ जोड़कर प्रणाम करें। मै नहीं कहता हू कि धर्मशाला, मठों और मंदिरों में बैठने वाले लोगों का अपमान करने लगे। यह आप की मर्जी है कि आप उनके साथ क्या करते हैं। लेकिन जबतक हम जिनकी वजह से हमारे घर, आंगन, सड़क, गलियां जीने लायक होती है उन्हें प्रणाम नहीं करेगें, तबतक हम अपनी जिंदगी में सिर के बल खड़े होकर उल्टा जीने का काम कर रहे हैं। और जैसे सिर के बल खड़ा हुआ व्यक्ति गति नहीं कर सकता, वैसे ही हम वास्तव में कोई गति नहीं कर रहे हैं। हम सिर के बल खड़े सड़ रहे हैं, बरबाद हो रहे हैं, मर रहे हैं। इसके गवाह हमारी सड़ी हुई नदियां,  नंगे होते हुए पहाड़, बदबूदार गलियां, सूखे हुए तालाब, गंधाती हुई झीले, बिना पानी के कुएं है। यह सब इस बात का गवाह हैं कि हजारां वर्षों से हमने एक बीमार जिन्दगी जी हैं। उस बीमारी को हमने सभ्यता कहा है। और उस बीमारी को छुपाने के अनेक उपकरणों को जुटाने को हमने विज्ञान और अपना विकास कहा है। पहले से ही बहुत देर हो चुकी है अब भी यदि हमने जीने का सही और वास्तविक तरीका नहीं सीखा तो समग्र विनाश के अलावा और कोई सम्भव भविष्य दिखाई नहीं पड़ता है।

 

 

हमारी प्रियंका जब किसी महाकाव्य की नायिका बनेगी वह रामराज्य होगा।

 

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